ज़िन्दगी की तंग राहों में
कभी सीधे न चल सके
जब भी चलने की कोशिश की
कभी सर झुकाना पड़ा
तो कभी हाथ तंग किये
कभी संस्कारों को दरकिनार करना पड़ा
तो कभी धर्म की दुहाई देनी पड़ी
.........anand vikram.....
कभी सीधे न चल सके
जब भी चलने की कोशिश की
कभी सर झुकाना पड़ा
तो कभी हाथ तंग किये
कभी संस्कारों को दरकिनार करना पड़ा
तो कभी धर्म की दुहाई देनी पड़ी
.........anand vikram.....
5 comments:
जिंदगी में हर पल कोई न कोई दुश्वारी हमें चुनौती देती है. सुंदर भावपूर्ण कविता.
आपके ब्लॉग को ज्वाइन कर रही हूँ. धन्यबाद.
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद । 'विक्रम' ब्लॉग पर उपस्थिति के लिए आपका आभार ।
तंग राहों में सीधा चलना एक इम्तिहान ही है ,,,,,
बहुत ही बढ़िया !
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