Thursday 30 January 2020


Tuesday 11 September 2018

एक वर्ष से अधिक हो गया पत्रिका के प्रकाशन में , अर्थ की कमी रही व्यर्थ की रही भागदौड़। 
नया अंक तैयार दस दिन में आ जायेगा। मित्रों विलम्ब के लिए संभव हो तो क्षमा कीजियेगा। 
                                                   
                              आनन्द विक्रम ,संपादक करुणावती साहित्य धारा
                                                           इलाहाबाद  

Wednesday 19 April 2017

कुछ यूँ ही

                 कुछ तथाकथि‍त साहित्यकार साहित्य में हदय के उद्गार कम मन के कुविचार ,मन की कुंठा ज्यादा लिखतें हैं । ये बहुत ही निंदनीय और शर्मनाक है । बहुत जल्दी प्रसिद्ध होने के ख्याल से लिखा गया ऐसा साहित्य समाज के लिए भी अभि‍शाप है । ऐसे साहित्यकार समाज को क्या पढाना चाहतें है इनके लिखे को पढकर मन उद्वविग्न हो जाता है ,मन कसैला हो जाता है । साहित्य पढे़ लिखों का समाज माना जाता है और यहॉ समाज के आरोप-प्रत्यारोप एवं गाली-गलौच को भी सभ्य भाषा में ढालकर पढने लायक भाषा में ढाला जाता है ताकि किसी को पढनें में बुरा न लगे । ये तथाकथ‍ित साहित्यकार तो परदे के बाहर एकदम यूॅ ही निर्वस्त्र नाचने को तैयार बैठे है । कहने को तो पढ़े लिखे पी०एच०डी किये सभ्य समाज से आयें हैं लेकिन मानसिकता बहुत ही तुच्छ है । मानते हैं कि विचारों की स्वतन्त्रता सबको है लेकिन इस स्वतन्त्रता में नैतिकता से पलायन कर जायें भला ये क्या बात हुई । ऐसे तथाकथ‍ित साहित्यकारों की कडी निन्दा की जानी चाहिए और खुले मंच से विरोध किया जाना चाहिए ।@avt

Monday 10 April 2017


जीवन जैसे व्‍यर्थ हो गया
सब ओर अर्थ हो गया
मोह भी उसके पीछे हुआ
गठबन्‍धन हुआ माया संग
सर्वोपरि सबसे अर्थ हुआ
साहित्‍य में भी अर्थ ढूॅढते
तत्‍ववि‍हीन साहित्‍य हुआ
पक्षपात पूर्ण रवैया अपना
कट पेस्‍ट साहित्‍य हुआ
इधर झॉकते उधर निहारते
ये अपना साहित्‍य हुआ
लिखने में भी कंजूसी करते
अच्‍छा साहित्‍य सपना हुआ
लिखते फिर छपवाते हम
साहित्‍य बडा महंगा हुआ
इतने से भी चलता नहीं काम
जबकि कितना विज्ञापन हुआ
साहित्‍य ढूढतें पन्‍नों में
जबकि साहित्‍य नेटमय हुआ
साहित्‍यकारों की कलम छूट गयी
कलम विहीन साहित्‍यकार हुआ
कवियत्री के मुख में अब कलम नहीं
कलम और पन्‍ना नेट हुआ
भावनाओं एहसासों का अकाल पड गया
सो सैड हिन्‍दी साहित्‍य हुआ

Friday 17 March 2017

              तेरी यादें



सहेजते समेटते                                          
 सिमट गया हूॅ
यादों का पुरानापन
भाने लगा है
तुम्‍हें सहेज लिया है
रात होती है
जब यादों के शब्‍द
खूब सुनहरे दिखायी देतें है
किताबें यादों की निकालकर
पढ लेता हूॅ
.......@avt


Sunday 12 March 2017

मेरे हिस्‍से की चाहत तू ले ले
तेरे हिस्‍से की नजाकत मैं लूँ
मैं रूठा रहॅॅू तू रहे मुझे मनाता
तू रोये तो मैं मुस्‍करा के चल दूँ

Saturday 18 February 2017

           धड़कने दिल की


धड़कने दिल की
धड़कती बहुत है आजकल
नींद भी कमबख्‍त
कई करवटों के बाद
हाथ आती है आजकल
अनायास ही हॅसता हूॅ
बिना किसी बात के
आॉखें नम हो जाती है आजकल
                       न जाने क्‍यों कोई
                       दिल को बहुत भाता है आजकल
                       @anandvt