पीने का पानी जब तक हमारे घर की टंकियो में भरा रहता है हम चिंतित नहीं होतें हैं और जहॉ ये टंकिया खाली होती हैं हम पत्रिकाओें के पन्ने ,समाचार पत्रों के कालम और तो और हम सड़कों के सन्नाटे पानी के लिए जन आन्दोलन से पाट देतें हैं । एक बार नहीं ये हर बार प्रत्येक वर्ष यही किया जाता है कि गर्मी आयी नहीं कि ये समस्या मुॅह बाये सुरसा की तरह खड़ी हो जाती है । कारण हम भोजन के बिना तो दो तीन दिन रह सकतें हैें लेकिन पानी की प्यास अगर अभी लगी तो अभी चाहिए । हद से हद एकाध घन्टे का विलम्ब सहा जा सकता है , उससे ज्यादा नहीं क्योंकि पानी की प्यास होती ही ऐसी है । जल ही जीवन है यूॅ ही नहीं कहा जाता है ।
पानी का उपयोग हम बखूबी करना जानतें है और इसका दुरुपयोग उससे बेहतर जानतें हैं । हम नहाये या न नहाये अपनी गाडियों को जरुर धुलतें है जबकि गाड़ी साफ करने के लिए एक गीला कपड़ा और एक सूखा कपड़ा ही पर्याप्त है लेकिन कई बाल्टी पानी बहा देतें हैं । गर्मी में ,गर्मी ही नहीं ठण्डी में भी ताजे पानी के चक्कर में न जाने कितने घरों की टंकियॉ हर सुबह शाम खाली होती हैं और भरी जाती हैं । सुबह शाम का पानी बासी समझकर सड़को पर बहा दिया जाता है जबकि महीनों पुरानी बोतलों का बन्द पानी हम पैसे देकर बडे फख्र के साथ पीतें हैं और कुछ तो पीने के लिए कम दिखाने के लिए ज्यादा खरीदतें है । पहले गाॅवों में एक दो कुॅए होते थे जिससे पूरे गॉव की प्यास बुझती थी और जरुरतें भी पूरी हो जाती थी । आज गॉवों में भी हर घर में सबमर्सिबल पम्प लगें है । मतलब धरती से पानी दोहन करना हमें बखूबी आता है उसके बचत के बारे में हम अनभिज्ञ हैं । या यूॅ कहें कि जानबूझकर अनभिज्ञ बनें हुए है । हर वर्ष पानी की किल्लत से दो चार होना पड़ता है लेकिन हम अपनी आदतें नहीं सुधार रहे । इतिहास देखिए अपने पूर्वजों की कुछ गल्तियों का खामियाजा हम आज भी भुगत रहें हैं और उन्हें कोसतें हैं । वही गल्तियॉ हम दुहरा रहें हैं जिसे हमारी आने वाली पीढियॉ झेलेंगी और हमें दिल से कोसेंगी ,सच्ची बहुत दिल से कोसेगी । हम आने वाले कल पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहें आखिर कब तक । धरती पर जीवन पानी से ही है चाहे वो पेड़-पौधे हो या जीव-जन्तु हो ।
हम पानी के लिए सरकार को भला बुरा कहतें अपनी जिम्मेदारियों से मुहॅ मोडते है । केवल पानी ही नहीं और भी बहुत सी बातें हैं जिस पर हम अपनी जिम्मेदारी नहीं समझतें और दूसरों को समझाने के लिए तैयार बैठें हैं । अभी भी पानी का मोल पहचानिए और उसके बचाव में सब मिलकर कदम उठायें । कहीं जानें की जरुरत नहीं ,न ही कोई आन्दोलन करना है । शुरुआत अपने घर से करें , कहतें हैं न कि बूॅद-बूॅद से घड़ा भर जाता है । -------@आनन्द विक्रम
हम पानी के लिए सरकार को भला बुरा कहतें अपनी जिम्मेदारियों से मुहॅ मोडते है । केवल पानी ही नहीं और भी बहुत सी बातें हैं जिस पर हम अपनी जिम्मेदारी नहीं समझतें और दूसरों को समझाने के लिए तैयार बैठें हैं । अभी भी पानी का मोल पहचानिए और उसके बचाव में सब मिलकर कदम उठायें । कहीं जानें की जरुरत नहीं ,न ही कोई आन्दोलन करना है । शुरुआत अपने घर से करें , कहतें हैं न कि बूॅद-बूॅद से घड़ा भर जाता है । -------@आनन्द विक्रम
2 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आदरणीय ब्लाग आने के लिए आभार और टिप्पणी के लिए सादर धन्यवाद ।
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