दबे पाँव कभी किसी को देखा किया करते थे छुप छुप के
एक जूनून था हर मौसम में उसे देखने की छुप छुप के
जेठ की दुपहरी हो या हो कुआर कार्तिक की ठण्ड
मुहाने से मुड़कर उसके घर जरूर जाते छुप छुप के
न कहने की हिम्मत थी न किसी से कहलाने की
प्यार तो था पर कह न सके किये छुप छुप के
अफ़सोस आज भी है रहेगा हमेशा अपनी नादानी पर
पर आप न करना प्यार आनंद कभी छुप छुप के ।
..............................................आनंद विक्रम .............
एक जूनून था हर मौसम में उसे देखने की छुप छुप के
जेठ की दुपहरी हो या हो कुआर कार्तिक की ठण्ड
मुहाने से मुड़कर उसके घर जरूर जाते छुप छुप के
न कहने की हिम्मत थी न किसी से कहलाने की
प्यार तो था पर कह न सके किये छुप छुप के
अफ़सोस आज भी है रहेगा हमेशा अपनी नादानी पर
पर आप न करना प्यार आनंद कभी छुप छुप के ।
..............................................आनंद विक्रम .............
2 comments:
सुंदर अहसास से परिपूर्ण भावपूर्ण और संवेदनात्मक प्रस्तुति.
aaj aapki bahut sari post padhi. sabhi bahut achchhi lagi....
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