जीवन जैसे व्यर्थ हो गया
सब ओर अर्थ हो गया
मोह भी उसके पीछे हुआ
गठबन्धन हुआ माया संग
सर्वोपरि सबसे अर्थ हुआ
साहित्य में भी अर्थ ढूॅढते
तत्वविहीन साहित्य हुआ
पक्षपात पूर्ण रवैया अपना
कट पेस्ट साहित्य हुआ
इधर झॉकते उधर निहारते
ये अपना साहित्य हुआ
लिखने में भी कंजूसी करते
अच्छा साहित्य सपना हुआ
लिखते फिर छपवाते हम
साहित्य बडा महंगा हुआ
इतने से भी चलता नहीं काम
जबकि कितना विज्ञापन हुआ
साहित्य ढूढतें पन्नों में
जबकि साहित्य नेटमय हुआ
साहित्यकारों की कलम छूट गयी
कलम विहीन साहित्यकार हुआ
कवियत्री के मुख में अब कलम नहीं
कलम और पन्ना नेट हुआ
भावनाओं एहसासों का अकाल पड गया
सो सैड हिन्दी साहित्य हुआ
7 comments:
सुन्दर व्याख्या बदलते साहित्य की ,आभार।
आदरणीय 'पॉच लिंको के आनन्द में 'शामिल करने के आभार
भाई धु्व सिंह जी ब्लाग आने और टिप्पणी देने के लिए आभार
आज साहित्य का सच यहीं हैं। कागज कलम पर लिखने बालो का अकाल हैं। अच्छा लिखने वालों की कमी फ़िर भी खुशी इस बात की हैं की कम ही सहीं आज भी अच्छा साहित्य लिखा व पढ़ा जा रहा हैं। नेट ने भी एक य़ुवा वर्ग का पाठक व लेखक खड़े किए हैं।
http://savanxxx.blogspot.in
जी सही कहा ,सावन जी ब्लाॅग पर आने और टिप्पणी के लिए आभार
कम शब्दों गहरी बात
हार्दिक आभार आशीर्वाद स्वरुप्ा टिप्पएाी के लिए
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