Monday 10 April 2017


जीवन जैसे व्‍यर्थ हो गया
सब ओर अर्थ हो गया
मोह भी उसके पीछे हुआ
गठबन्‍धन हुआ माया संग
सर्वोपरि सबसे अर्थ हुआ
साहित्‍य में भी अर्थ ढूॅढते
तत्‍ववि‍हीन साहित्‍य हुआ
पक्षपात पूर्ण रवैया अपना
कट पेस्‍ट साहित्‍य हुआ
इधर झॉकते उधर निहारते
ये अपना साहित्‍य हुआ
लिखने में भी कंजूसी करते
अच्‍छा साहित्‍य सपना हुआ
लिखते फिर छपवाते हम
साहित्‍य बडा महंगा हुआ
इतने से भी चलता नहीं काम
जबकि कितना विज्ञापन हुआ
साहित्‍य ढूढतें पन्‍नों में
जबकि साहित्‍य नेटमय हुआ
साहित्‍यकारों की कलम छूट गयी
कलम विहीन साहित्‍यकार हुआ
कवियत्री के मुख में अब कलम नहीं
कलम और पन्‍ना नेट हुआ
भावनाओं एहसासों का अकाल पड गया
सो सैड हिन्‍दी साहित्‍य हुआ

7 comments:

'एकलव्य' said...

सुन्दर व्याख्या बदलते साहित्य की ,आभार।

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

आदरणीय 'पॉच लिंको के आनन्‍द में 'शामिल करने के आभार

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

भाई धु्व सिंह जी ब्‍लाग आने और टिप्‍पणी देने के लिए आभार

Unknown said...

आज साहित्य का सच यहीं हैं। कागज कलम पर लिखने बालो का अकाल हैं। अच्छा लिखने वालों की कमी फ़िर भी खुशी इस बात की हैं की कम ही सहीं आज भी अच्छा साहित्य लिखा व पढ़ा जा रहा हैं। नेट ने भी एक य़ुवा वर्ग का पाठक व लेखक खड़े किए हैं।
http://savanxxx.blogspot.in

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

जी सही कहा ,सावन जी ब्‍लाॅग पर आने और टिप्‍पणी के लिए आभार

विभा रानी श्रीवास्तव said...

कम शब्दों गहरी बात

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

हार्दिक आभार आशीर्वाद स्‍वरुप्‍ा टिप्‍पएाी के लिए