अखबार बोलतें हैं
हम नहीं कहते
अखबार बोलतें हैं
बिकी हैं सड़के
व्यवस्थॉए नीलाम हैं
सड़कों व चौराहों से हो रही
उगाही आम है
कीमत साॅसों की हो
या एहसासों की
आप बोलों तो
चन्द अलफाजों के भी दाम है
अखबार बोलतें हैं
बिकी हैं सड़के
व्यवस्थॉए नीलाम हैं
सड़कों व चौराहों से हो रही
उगाही आम है
कीमत साॅसों की हो
या एहसासों की
आप बोलों तो
चन्द अलफाजों के भी दाम है
2 comments:
अख़बारो की जगह हम बोलना चालू कर देंगे तो समस्याओं के समाधान निकल आएगें।
मगर हम कुछ बोले तो सहीं ......... कब तक मौन साधे बैठे रहेंगे।
http://savanxxx.blogspot.in
पोस्ट पर आकर टिप्पणी करने के लिए आभार
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