समाचार पत्रों में साहित्यिक पन्नें
जो भी समाचार पत्र उठायें सब विज्ञापनों के बोझ से दबे
रहतें है और ठीक भी है इन्हीं के दम पर तो निकलता भी है । देश-विदेश का
समाचार ढाई से चार रुपये में मिल जाता है ,कौन आया ,गया , कहॉ चोरी हुई
,कौन पकड़ा गया , कौन जीता और कौन हारा , किस राजनेता ने किसको क्या कहा
और तो और खेल के समाचार भी अप टू डेट होतें है । एक बस साहित्य के साथ ही
सौतेला व्यवहार होता है । ऐसा नही है कि इसका पन्ना नहीं होता है , होता
है लेकिन खानापूर्ति की तरह कि कोई कहने न पाये कि फलॉ समाचार पत्र में
साहित्य का कालम नहीं होता है । हम कहतें कि ऐसा आधा तिहा पन्ना होने से
क्या फायदा । सप्ताह में वो भी आधा पन्ना भला ऐ भी कोई बात हुई । मुॅह
झूठा कराने वाली बात हो गयी । अगर यही आधा पन्ना भी प्रति दिन निकले तो
बहुत है । न जाने कितने तो साहित्यिक कार्यक्रम देशभर में होतें रहतें है
,कितनी पुस्तकों का लोकार्पण भी होता है , आये दिन कवि सम्मेलनों के
कार्यक्रम होतें रहतें हैं , सामाजिक एवं सास्कृतिक संस्थायें विद्वानों
/ लेखकों को पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित करतें रहतें है । ऐसी
खबरें नगण्य होतीं हैं बल्कि ये कहेंगे ऐसे समाचारों की टोह ही नहीं ली
जाती है । जो प्रकाशित भी होता है ,थोड़ा कहने में संकोच लगता है, वो
लेखकों रचनाकारों के स्वयं के प्रयास के फलस्वरुप प्रकाशित होता है ।
ऐसी सूचनायें आप प्रेस में देने जायें तो ,जो लोग कभी गयें होंगें जानतें
होंगे , बडा अजीब तरह का मुॅह बनातें है ।
भला हो फेसबुक का कि आजकल ऐसी बहुत से समाचार यहीं
मिल जातें हैं । किस पुस्तक का कहॉ लोकार्पण हुआ ,किसे कौन सा सम्मान
मिला , कहॉ कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ और आजकल साहित्य में नया क्या चल
रहा है । अगर ये फेसबुक , गूगल ,ट्यूटर और ब्लॉग आदि न होते तो निरीह
साहित्यकार कहॉ जाते । हम तो नेट की दुनिया के इन जैसे सभी आभासी दुनिया
का दिल से आभार व्यक्त करतें हैं कि हमारे दुखों को भली भॅति समझतें हैं
।
No comments:
Post a Comment