माँ
बचपन से लेकर बूढी होने तकमाँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
बिटिया बनकर घर महकाती हो
घर का हर कोना चमकाती हो
बहना बन प्यार बरसाती हो
माँ का कामों में हाथ बटाती हो
भाई को तुम माँ सा दुलारती हो
छोटी हो तो भी प्यार दिखाती हो
जब चाहे बहना बन जाती हो
जब चाहे बन जाती दीदी
कितने रूप तुम्हारे हैं माँ
हम गिनते ही रह जाते है
एक समय में रूप अनेकों
माँ तुम सबमे रम जाती हो
पत्नी ,माँ ,भाभी और बहना
माँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
माँ तो माँ होती ही है
दीदी भी माँ जैसी ही है
मौसी तो माँ होती ही है
बुआ भी माँ जैसी ही है
चाची तो माँ होती ही है
हर ममता में माँ होती ही है
बचपन से लेकर बूढी होने तक
माँ तुम कितने रूप दिखाती हो
हर रूप रंग में माँ का रूप
भली भाँती दिखलाती हो
एक समय में रूप अनेकों
माँ तुम सबमे रम जाती हो
पत्नी ,माँ ,भाभी और बहना
माँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
......................आनंद विक्रम ....
13 comments:
बेहतरीन प्रस्तुति
हार्दिक शुभकामनायें
बेहतरीन प्रस्तुति
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुन्दर मनभावन रचना है. माँ को शब्दों में बयान करने का अनूठा प्रयास.
सम्मानित करने के लिए बहुत बहुत आभार तुषार जी ।
माँ की भिन्न भिन्न ममतामयी रूपों का सुन्दर चित्रण
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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माँ जैसे प्यारी रचना
उनसे अच्छा कोई नहीं ...
मंगल कामनाएं !
बहुत सुन्दर...
माँ जैसा कोई और कहाँ...
अनु
मां पर लिखना सार्थक सृजन है
बहुत सुंदर रचना
बधाई
आग्रह हैं पढ़े
तपती गरमी जेठ मास में---
http://jyoti-khare.blogspot.i
बहुत उम्दा,लाजबाब प्रस्तुति,,बधाई
Recent post: ओ प्यारी लली,
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
प्रशंसनीय रचना - बधाई
शब्दों की मुस्कुराहट पर ….माँ तुम्हारे लिए हर पंक्ति छोटी है
शब्दों की मुस्कुराहट पर …सुख दुःख इसी का नाम जिंदगी है :)
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