कवि की ड्योढ़ी
जिसमे वो कवि अपने पक्के मकान से
आता था लेने नीम की छैया
जिस छैया के नीचे कवि
महसूस किया करता था
उस नदी की वेदना ,संवेदना ,भावो
और गति के बारे में
लिखता था
जो
अवढर पथ पर जाती चंचला बाला सी
जो अठभूजी शैल पर
चढ़ती जाती मरकत माला सी
पुकार नाम करुणावती
शक्ति है जिसकी ज्वाला सी
अब की बार बाढ़ नदी की
ताक रही थी
उस कवि की ड्योढ़ी
जो था उसका पुत्र सा
और वो थी जिसकी माँ सी
अब की बार बाढ़ करुणावती की
ताक रही थी
उस पुत्र की ड्योढ़ी
जो उसकी गाथा लिखता था
जो उसकी भाषा पढ़ता था
औरों को भी समझाता था
कि
लिखा गया जिसके तट पर
इतिहास अजब
रोम -रोम में जो
भरता सूरज में आगी
है यही कही समाधिस्थ
वह कान्तिपुरी
हां यही समाधिस्थ है वह
विपुल शक्ति का अनुरागी
कि
पीकर जिसका अमृत
भारशिव नागो ने
तट पर बरसाया
खून कुषाणों के रण में
वह समय रहा उस वीरसेन कुषाण का
चरते थे हाथी जिसके
यही इसी हाथीवन में
अब की बार बाढ़ नदी की
ताक रही उस कवि की ड्योढ़ी
जो उसका इतिहास बताता
जो उसका एहसास बताता
पूज्य पिताजी को समर्पित
आनन्द
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