Monday 23 July 2012

          पैसा

  दुनिया नाचे जिसके पीछे 
  न मिलने से दुनिया छूटे
  आपस में भाई को बांटे
  उसका नाम है पैसा
  चाहे जिसको नाच नचाये
  चाहे जैसा काम कराये
  जी हाँ उसका नाम है पैसा
  दरिद्रता को दूर भगाये
  जिस घर में यह पैसा जाये
  दिन रात को नींद न आये
  इसका ही तो नाम है पैसा
  घर में रक्खें इसको ऐसे
  तोता हो पिंजरे में जैसे
  सत्ता इसके बल पर उलटे
  भईया इसके बल पर पलटे
  पगड़ी रहे सलामत जिससे
  वो है पैसा जी हाँ पैसा
  इसको ही कहते है पैसा 


मेरी ये कविता चार वर्ष पूर्व "कवि की ड्योढ़ी " लघु काव्य संग्रह में प्रकाशित हुई  थी । आज इस संग्रह को पढ़ते हुये  मन हुआ कि इसे आपको भी पढ़ायें ।  

    

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