मैं एक पहेली
मैं सभी के लिए
यहाँ तक कि
अपनों के लिए भी
एक पहेली हूँ
ये पहेली सुलझती तो है
पर कई पूर्ण विराम के बाद
इन पूर्ण विरामों से वक्त के
कई कोरे पन्ने
जब सोचने और समझाने से
भर जाते हैं
तब कहीं जाकर
हम किसी को समझ में आतें है
और जब समझ में आतें हैं आनंद
कभी वो ,तो कभी हम
बहुत दूर निकल जातें हैं
ये बताना भी मुश्किल होता है
कि पहेली सुलझा ली है
क्योंकि जब तक सुलझती है पहेली
कभी वो तो कभी हम
बहुत दूर निकल जातें हैं ।
………………आनंद विक्रम
5 comments:
ati uttam !!
बहुत ही बढ़िया उम्दा प्रस्तुति,,,
RECENT POST : फूल बिछा न सको
बिल्कुल सही बात
सार्थक लेखन
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत खूब, लाजबाब !
पहेलियाँ कब सुलझी हैं...!
सुलझते ही उलझने का भी दौर शुरू हो जाता है...
Post a Comment