तुम्हारी यादें
बहुत पीड़ा से भरी हैं तुम्हारी यादें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
जब भी आती हैं भिगो जाती हैं आँखें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
रहूँ भीड़ में या फिर अकेला
आँख बंद कर याद करने को जी चाहता है
बहुत पीड़ा से भरी हैं तुम्हारी यादें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
..................आनंद विक्रम ......
बहुत पीड़ा से भरी हैं तुम्हारी यादें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
जब भी आती हैं भिगो जाती हैं आँखें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
रहूँ भीड़ में या फिर अकेला
आँख बंद कर याद करने को जी चाहता है
बहुत पीड़ा से भरी हैं तुम्हारी यादें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
..................आनंद विक्रम ......
3 comments:
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
अच्छा लिखा हैं विक्रम भाई आपने
ऐसी ही होती हैं यादें!
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