यादें बनी रहें
राहें बनी चले
पथिक बढतें रहें
राह भटकें नहीं
साथ छूटे नहीं
हाथ छूटे नहीं
इसीलिए अपनों की
स्मृतियों को सहेज जाता है
ताकि
यादें बनी रहें
राह भटके नहीं
पथिक बढ़ते रहें ।
..........आनंद विक्रम .....
राहें बनी चले
पथिक बढतें रहें
राह भटकें नहीं
साथ छूटे नहीं
हाथ छूटे नहीं
इसीलिए अपनों की
स्मृतियों को सहेज जाता है
ताकि
यादें बनी रहें
राह भटके नहीं
पथिक बढ़ते रहें ।
..........आनंद विक्रम .....
4 comments:
यादों की नई परिभाषा रोचक और सार्थक लगी ....
हार्दिक शुभकामनायें ......
वाह !!! बेहतरीन अभिव्यक्ति ,,,आभार,आनंद जी
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सच है,स्मृतियों में ही साथ बना रहता है.
nihsadeh smritiyon se ham bahut kuchcch seekh sakte hain.
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