Wednesday 17 April 2013

यादें बनी रहें
राहें बनी चले
पथिक बढतें रहें
राह भटकें नहीं
साथ छूटे नहीं
हाथ छूटे नहीं
इसीलिए अपनों की
स्मृतियों को सहेज जाता है
ताकि
यादें बनी रहें
राह भटके नहीं
पथिक बढ़ते रहें ।
..........आनंद विक्रम .....




4 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

यादों की नई परिभाषा रोचक और सार्थक लगी ....
हार्दिक शुभकामनायें ......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह !!! बेहतरीन अभिव्यक्ति ,,,आभार,आनंद जी
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.

Alpana Verma said...

सच है,स्मृतियों में ही साथ बना रहता है.

tbsingh said...

nihsadeh smritiyon se ham bahut kuchcch seekh sakte hain.