देश का शासन जब जब अंग्रेजो के हाथ में था तब हम सभी का एकमात्र
लक्ष्य देश की स्वतन्त्रता , वो किसी भी कीमत मंजूर था पर आज स्वतन्त्रता के मायने बदल गयें है
पता नहीं किस स्वतन्त्रता की बात की जाती है। हर व्यक्ति को पूरी स्वतन्त्रता के साथ अपनी बात रखने की पूरी
आजादी होनी चाहिए और हमारे ख्याल से वो आजादी हर पढे लिखे और न पढे लिखे सभी को प्राप्त है वो अलग बात है कि आप इस आजादी का उपयोग किस प्रकार करतें हैं । स्वतन्त्रता के नये आन्दोलन में आज बहुत कुछ बदल रहा है और बदल भी गया है । फिर भी हम न जाने क्या बहुत
कुछ बदलने के फिराक में हैं ? एक बात और हममें से बहुत लोगों को यह भी नहीं
मालूम कि वो क्या बदलना चाह रहें हैं वो तो भेड़ चाल के तरह बस भीड़ का हिस्सा बन इस तरह के ऊट पटॉग आन्दोलन को हवा दे रहें हैं । वास्तविकता यह कि हम केवल स्वछन्दता
की तलाश में हैं कि हम कुछ भी करें हम पर किसी का अंकुश
न हो । कुछ भी खाये ,कुछ भी पहने ,किसी को कुछ भी कहें ,कुछ भी अनर्गल
प्रलाप करें और कोई कुछ भी न कहे ,घर से किसी भी समय कहीें निकल लें और कोई
कुछ न पूछे , बाहर वालों को तो पूछने का अधिकार ही नहीं और जिन्हें
अधिकार है वो भी न पूछे । चाहे हाफ पैन्ट पहने ,कट पहने ,फटी जीन्स पहनें
और कोई पूछे कि क्या चल रहा है तो इतना बोलें फॉग चल रहा है
.....! कमबख्त ये बाबा जी का बाइसकोप भी अजीब है ,बेचारा सिखाता सबकुछ है
लेकिन हम स्वतन्त्रता की तलाश में भटके हुये प्राणी चाहकर भी उसे नहीं
अपनाते , अरे ओल्ड फैशन नहीं लगेगा और लोग क्या कहेंगे । बहुत सही बात कि
लोग क्या कहेंगे और लोगों की परवाह भी नहीं । आज का फैशन तो अजीब है
,गर्मी में पॉव और बॉहें आधी खुली लेकिन मुॅह पर ऑच न आये ढके रहतें हैं , कभी कभी तो ये भी लगता है कि सामने वाला सब कुछ दिखाना चाह रहा है हमीं आप देखने में संकोच कर जातें हैं । मुॅह फेरना पड़ जाता है । भई ऐसी ही आजादी की तलब है लोगों को । बोलने के लिए उन्हें ऐसी आजादी चाहिए कि वो कुछ भी बोले कोई उन्हें टोके नहीं भले ही वो देश के फलॉने ढकाने को कुछ भी कहे , चाहे पैदा करने वाले को कुछ कहें या फिर पैदा होने वाली जगह को कुछ कहें ऐसी आजादी का आन्दोलन चल रहा है । हम स्वयं अपनी जिम्मेदारियों से भागतें हैं और सामने वाले को उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराने के चक्कर में दिन रात एक कर देतें हैं ऐसा आन्दोलन चल रहा है । टी० वी० और फिल्में दिखायें कुछ भी पर अन्त हमेशा अच्छाई पर समाप्त होता है ,सन्देश हमेशा अच्छा ही दिया जाता है पर जाने कौन सी विडम्बना है कि ग्रहण गलत बातों का ही करतें हैं । हर बात में हमें स्वछन्दता चाहिए । ऐसी स्वछन्दता को क्या नाम दें ..........!!!
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