Saturday 24 August 2013

                 आज़ादी

देश  को आज़ादी तो मिली
क्या देश के लोगों को आज़ादी मिली ?
कितने लोगों को मिली ?
वही जो आज़ादी के पहले आज़ाद थे !
इससे बेहतर तो पहले ही थे
कम से कम 
एक चीज तो सबके पास थी
देश की आज़ादी का गम
उसके लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा
देश को आज़ादी तो मिली
काहे की आज़ादी ?
देश और देश की  बहू बेटियों की इज्जत लूटने की आज़ादी
ऐसी आज़ादी से बेहतर तो गुलामी भली
देश को आज़ादी तो मिली
क्या देश के लोगों को आज़ादी मिली ? 
………… आनंद विक्रम   >

3 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

अगर सब सच में परेशान हैं
बदलाव लाना चाहते हैं
तो
सामूहिक वहिष्कार करें ना
हम इस बार के चुनाव का

केवल कागज काला करने से कुछ नहीं होगा
ये सब समझते हैं
~~
God Bless U

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह !!! बहुत सुंदर रचना,,,

RECENT POST : पाँच( दोहे )

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



देश को आज़ादी तो मिली
क्या देश के लोगों को आज़ादी मिली ?

अब सचमुच गंभीरता से सोचने और सक्रिय होने का समय है...
न कि सहते रहने का ।
-
हमें ही हल निकालना है अपनी मुश्किलात का
जवाब के लिए किसी सवाल को तलाश लो

लहू रहे न सर्द अब उबाल को तलाश लो
दबी जो राख में हृदय की ज्वाल को तलाश लो

चुनाव का बहिष्कार आत्मघात है !

आदरणीय आनंद विक्रम जी
कविता के माध्य्म से विचारणीय पक्ष रखने के लिए आभार !


हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार