Wednesday 10 July 2013

        तुम्हारी यादें
बहुत पीड़ा से भरी हैं तुम्हारी यादें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
जब भी आती हैं भिगो जाती हैं आँखें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
रहूँ भीड़ में या फिर अकेला
आँख बंद कर याद करने को जी चाहता है
बहुत पीड़ा से भरी हैं तुम्हारी यादें
फिर भी याद करने को जी चाहता है
..................आनंद विक्रम ......

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

Dr ajay yadav said...

अच्छा लिखा हैं विक्रम भाई आपने

अनुपमा पाठक said...

ऐसी ही होती हैं यादें!