Wednesday 10 April 2013

भीड़ में हूँ
फिर भी तनहा हूँ
है सभी साथ दोस्त
फिर तनहा हूँ 
बेतहाशा दर्द के मानिंद
हैं तनहाइयाँ मेरी
राह चलता हूँ
सफ़र में हैं सभी साथ
फिर तनहा हूँ 
बहुत कुछ खो चुका
जो मेरा ना था
लगता था अपना
आज उसके बिना
तनहा हूँ
हैं जानते पहचानते सब मुझे
इस भरे बाजार में
फिर मैं तनहा हूँ
एक निगाह जिस पर पड़ती है
झुककर सलाम करतें  है
मेरा और  मेरे हुक्म का
एहतराम करतें  है
फिर मैं तनहा हूँ
किसी बात की फिक्र नहीं
एक तेरे सिवा
हूँ सफ़र में हैं सभी साथ
फिर मैं तनहा हूँ ।
.............आनंद विक्रम ........

4 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह !!! बहुत प्रभावशाली सुंदर अभिव्यक्ति !!!
नववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
recent post : भूल जाते है लोग,

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

vikram7 said...

Wah...

Tamasha-E-Zindagi said...

बेहद सुन्दर रचना | शुभकामनायें |

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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