Thursday 18 April 2013

यादें

करूँ  न याद मगर
याद आ ही जाते हो
कोई रिश्ता नहीं
फिर भी न जाने क्यों
अपने से भी
खास लगते हो
जब यादें तुम्हारी
घेरती है मुझे
तन्हाइयों की चाहत
होती है
कोई रिश्ता नहीं
पर किसी रिश्ते से भी
खास लगते हो
ये मालूम है कि
लौट कर पीछे जाना
मुमकिन नहीं
बस देख लेतें हैं
पीछे मुड़कर
भूली बिसरी यादों को
बहुत कुछ धुंधला हो गया है
यादें ही शेष है
रूबरू होकर भी
चले जाओगे तो
नामुमकिन  है पहचानना
बस यादें हैं शेष
तुम्हारी यादें हैं शेष
हमारी यादें हैं शेष
वही यादें हैं शेष
करूँ न याद मगर
याद आ ही जाते हो ।
..............आनंद विक्रम ........

2 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें
यादों के सहारे ही तो जीना आसान होता है .....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

करूँ न याद मगर
याद आ ही जाते हो ।
बहुत उम्दा यादो से भरी अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,
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